Thursday, November 27, 2008

आज घर के एक कोने में बिखरा पड़ा हूँ मैं ....

हुई है ज़िन्दगी मेहरबान लो आबला दिया ।
मोहब्बत में हमें इनाम उसने गिला दिया ॥

आज घर के एक कोने में, बिखरा पड़ा हूँ मैं ।
यही किस्मत थी हमारी, यही सिला दिया ॥

कहती थी के करती है,मुझे टूट के मोहब्बत।
आई जो मेरे पास तो, मुझे इब्तिला दिया ॥

कभी फुरकत की बात पे,कहा चुप करो जी तुम ।
जाने लगी तो उम्र भर ,का फासिला दिया ॥

सी - सी के पहन लूँगा, वही चाके - कफ़न मैं ।
जिस नाज़ से"अर्श"तुने खाक में मिला दिया ॥

प्रकाश "अर्श"
२७/११/१००८

इब्तिला =पीडा,कष्ट । आबला =छाला

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