तेरे दिल से ,मेरे दिल का रिश्ता क्या ।
तू मिलती, ना मैं मिलता, फ़िर मिलता क्या ॥
सोंच रहा ,क्यूँ तेरा ऐसे नाम लिया ,
याद है अब भी भूलता फ़िर तो भूलता क्या ॥
वो फलक जो दूर तलक जा मिलता है ,
जाता मैं तो वो वहां फ़िर मिलता क्या ॥
याद है आब भी तेरी सांसों की गर्माहट ,
राख हुआ था जलने को अब जलता क्या ॥
वर्षो पहले एक चमन होता था अपना ,
एक भी फुल अब "अर्श"वहां है खिलता क्या ॥
प्रकाश "अर्श"
२०/११/२००८
Thursday, November 20, 2008
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आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...