उठे हैं जब भी ये हाँथ , तो दुआ के लिए
मुझको मुज़रिम न बनावो खुदा के लिए ॥
किस तरह उनसे कहूँ के, नही है मेरा कसूर
कोई लफ़्ज़ ही नहीं है अब जुबां के लिए
कुछ तो एहतियात करो ,ऐसे ना करो तुम
मान भी जावो मेरा कहा खुदा के लिए ॥
आए नही हो तुम ,जब भी किया वादा
अच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ॥
अकबर बना है "अर्श" वो जिसने किया गुनाह
कोई नही है अत्फ़ यहाँ बे-जुबां के लिए ॥
प्रकाश "अर्श"
७/११/२००८
अकबर = महान , अत्फ़ = दया ,कृपा
Friday, November 7, 2008
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