tag:blogger.com,1999:blog-20354803582370143092024-03-05T14:25:52.660-08:00" अर्श " Read below "Arsh" This is not working..." जिंदगी मेरे घर आना जिंदगी ""अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-54170640472393463502009-02-01T08:10:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.874-08:00तुम्हे रात-दिन क्यूँ मैं सोचा करूँ ...आप सबके सामने एक गीत नज़्र कर रहा हूँ ,जो मूलतः पहली गीत है इस ब्लॉग पे मेरी ।गलती के लिए मुआफी चाहूँगा ....<br /><br /><br />तुम्हे रात-दिन क्यूँ मैं सोचा करूँ।<br />तेरे ख्वाब ही अक्सर देखा करूँ॥<br /><br />नहीं के हमें दिल लगना नही था<br />गली हुस्न की हमको जाना नही था<br />बना के खुदा फ़िर क्यूँ सजदा करूँ ॥<br />तेरे ख्वाब ही .......<br /><br />अभी दिल हमारा धड़कना था सिखा<br />तुम्हारी नज़र से बचाना किसीका<br />मैं जिन्दा रहूँ या के तौबा करूँ ॥<br />तुम्हे रात दिन ........<br /><br />हमारी मोहब्बत के चर्चे है देखो<br />तुम्हे जानते है मेरे नाम से वो<br />है खाई कसम क्यूँ मैं धोखा करूँ ॥<br />तुम्हे रात दिन .....<br />तेरे ख्वाब ही अक्सर ....<br /><br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०१/०२/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com62tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-19092191342826088262009-01-15T05:56:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.874-08:00ख़ुद को पत्थर बना लिया यारों ...<span lang="HI" style="font-family:Mangal;">बहरे खफीफ </span>..............................................आशीर्वाद<br />२१२२-१२१२-२२....................................गुरु देव पंकज सुबीर जी <br /> <br />मैंने भी दिल लगा लिया यारों।<br />जख्म पे जख्म पा लिया यारों ॥<br /><br />मौज फ़िर ज़िन्दगी नही देती ।<br />जख्म गहरा जो ना लिया यारों ॥<br /><br />आज ना डगमगा के चल पाया ।<br />वादा बादे पे था लिया यारों ॥<br /><br />हादसे और हो गए होते ।<br />ख़ुद को पत्थर बना लिया यारों ॥<br /><br />दफ्न कर 'अर्श'लौट जाओ तुम।<br />रूह तो और जा लिया यारों ॥<br /><br />प्रकाश'अर्श'<br />१५/०१/२००९<br />बादे=शराब ,जा=जगह ।"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-72384993984862676592009-01-10T23:21:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.875-08:00रे मर जाएगा क्यूँ सोचे है ...<span></span><span></span><span></span><span></span><span></span><span></span>गुरु देव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल ...<br /><br />कल क्या होगा,क्यूँ सोचे है<br />मर जाएगा, क्यूँ सोचे है ॥<br /><br /><div class="Ih2E3d">खुद को तक, गिरवी रक्खा है<br />बिक जाएगा ,<span>क्यूँ</span> <span>सोचे</span> <span>है</span> <span>॥</span><br /></div><br /><div class="Ih2E3d">अपना घर कितना अपना है<br /></div>वो आएगा ,क्यूँ सोचे <span>है ॥<br /></span><br /><div class="Ih2E3d">शेर नहीं दिल, के छाले हैं<br />वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥<br /><br />बीत गया जो, रीत गया जो<br /></div><div class="Ih2E3d">फ़िर लौटेगा ,क्यूँ सोचे है ॥<br /><br /></div>अर्श है बेबस ,इस दुनिया में<br />पछतायेगा , क्यूँ सोचे है ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />११/०१/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-2207297659986228592009-01-10T02:33:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.875-08:00जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था...उसको मेरी मोहब्बत का एतबार न था ।<br />मैं लौट आऊंगा उसे मिरा इंतज़ार न था॥<br /><br />वो लौट आई है शहर में मोहब्बत लेकर<br />बचपन का प्यार शायद यादगार न था ॥<br /><br />लिखती थी हथेली पे वो इक नाम हमेशा<br />देखा तो नाम मिरा वो गमगुसार न था ॥<br /><br />पूछता रहा मैं हाल उसका औरों के हवाले<br />जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न <span>था॥<br /><br /></span><span></span>आया है वो भी देख लो चार अश्क बहा के<br />जिस मजार पे गया था वहां अश्कबार न था॥<br /><br />आया हूँ कहीं और या हूँ अपने शहर में<br />पहले तो बागबां"अर्श"यूँ बे-बहार न था ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />१०/०१/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-76379172277371163792009-01-06T08:16:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.875-08:00आप ही कन्धा आप ही जनाजा ...पुरानी रंजिश को हवा <span>दीजे ।<br /></span>फ़िर वही सूरत दिखा दीजे ॥<br /><br />आज मजबूर-ऐ हालात दिल है<br />मर ही जाने का हौसला दीजे ॥<br /><br />हाथ में चार पैसे है बचे अब<br />ना कहना चाँद-तारे ला दीजे ॥<br /><br />मैं ग़लत हूँ मुजरिम हूँ अगर<br />मुझको फंदे पे लटका दीजे ॥<br /><br />आखिरी ख्वाहिश भी छुपा लूँगा<br />आप जल्दी से दफना दीजे ॥<br /><br />आप ही कन्धा आप ही जनाजा<br />"अर्श"कब्र का रास्ता दिखा दीजे॥<br /><br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०६/०१/२००९<br />आप =मैं ख़ुद ,"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-35347088678510001302009-01-04T01:50:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.876-08:00सामने खड़ा है फासला है ये ...एक बड़ा अच्छा वाकया है ये ।<br />वो ना समझे है क्या नया है ये ?<br /><br />हम मोहब्बत में हो गए जुदा ।<br />लोग कहते इसे कायदा है ये ॥<br /><br />देख सरगोशी है मोहल्ले में<br />है मिली उनको जायका है ये ॥<br /><br />बह रही मुझमे वो लहू <span>बनके<br /></span>वो मेरी है बस माज़रा है ये ॥<br /><br />उम्र के जैसी लम्बी हुई दूरी<br />सामने खड़ा है फासला है ये ॥<br /><br />लोग कहते है बेवफा है"अर्श"<br />मैं अगर मानु तो बा-वफ़ा है ये॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०४/०१/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-37641594399527925302009-01-02T08:17:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.876-08:00ये खुश्बू जरा जानी पहचानी लगी ...ढूँढने उनको हम जब भी निकले ।<br />लो दूर तक बस रास्ते ही निकले ॥<br /><br />फासला बस कदम भर का ही <span>था,<br /></span>बढ़ा तो गाम फ़िर गाम ही <span>निकले ॥<br /><br /></span>दर्द में जब आँख से आंसू ना बहे ,<br />पिछली दफा थे आखिरी निकले ॥<br /><br />हया ने पूछा जब देखो शरमा के<br />हया का नाम तो हया ही निकले ॥<br /><br />उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली<br />मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥<br /><br />ये खुशबु जरा जानी पहचानी लगी<br />लगता है "अर्श"इधर से ही निकले ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०२/०१/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-84794639705949685882009-01-01T07:51:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.877-08:00है मुनासिब के याद-दाश्त मेरी ग़लत हो ...वो कौन है जो मेरी तरह दिखता है ।<br />है मेरा अक्स या मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />देखकर उड़ते परिंदों को दिल मेरा रोए<br />उड़ान तू भी तरसे तो मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />लहू को उसके रगों का मुआयना कर लो<br />लहू सा है तो फ़िर मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />मैं हूँ जो बस गैरते-साजिश में मारा गया<br />तू ठुकराया हुआ है तो मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />है मुनासिब के याद-दाश्त मेरी ग़लत हो<br />वादा उसने किया था जो मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />होता एहसास अगर"अर्श"अपने जुल्मों का<br />ना करता चर्चे अगर मेरी तरह दिखता है ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०१/०१/२००९"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-44910525186237255482008-12-30T07:42:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.877-08:00दरिया है वो प्यासा है वो देखो नकाब में ...चेहरा छुपाए रख्खा है वो देखो नकाब में ।<br />कातील है फ़रिश्ता है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />कत्ल करता है ऐसे के पता भी ना चले ,<br />जख्म देता है गहरा है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />हमसे रूठा है ये सितम है या अदा उसकी<br />जैसा भी है अच्छा है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />नाजुक लबों से उसके मोहब्बत की सदा सुन<br />जिन्दा हूँ के आया है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />मैं हूँ इस बात पे खामोश तू उसकी सब्र देख<br />दरिया है वो प्यासा है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />एक बेकली है जो दफ़न है"अर्श"मेरे सीने में<br />एक खलिश है के तड़पता है वो देखो नकाब में ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />३०/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-14300870323216525022008-12-27T07:20:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.878-08:00अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जाए...कोई लकीर नही खींचते दिलों के रास्ते में ।<br />के हमारा घर नही बांटता मीलों के रास्ते में ॥<br /><br />दोनों सरहद में बंटें है मगर यूँ गुमराह न हों<br />के अनपढ़ आ नही सकता काबीलों के रास्ते में ॥<br /><br />मौज आएगी टकराएगी मगर ये डर कैसा<br />के मौज दम भी तोडे है साहिलों के रास्ते में ॥<br /><br />दोनों ने तान रखा है निशाना एक दूजे पे<br />कोई फ़िर आ नही सकता जाहिलों के रास्ते में ॥<br /><br />रगों में खून भी बहता है उसके मेरे पूर्वज का<br />हमारी पहचान रहे कायम तब्दीलों के रास्ते में ॥<br /><br />अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जायें<br />कोई फ़िर आ नही सकता फाजिलों के रास्ते में॥<br /><br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />जुन्नार=जनेऊ ,तस्बीह=मुसलमानों का जाप माला<br />फाजिलों= प्रवीन,श्रेष्ठ ।"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-21698267136081303462008-12-26T07:17:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.878-08:00मेरे हर ख्वाब को मकसद बनाये बैठी है ...<div style="text-align: center;"><span>आज</span> <span>मैं</span> <span>इस</span> <span>ब्लॉग</span> <span>पे</span> <span>अपनी</span> <span>पचासवीं</span> <span>ग़ज़ल</span> <span>पोस्ट</span> <span>कर</span> <span>रहा</span> <span>हूँ</span> <span>आप</span> <span>सभी</span> <span>का</span> <span>स्नेह</span> <span>और</span> <span>आशीर्वाद</span> <span>चाहूँगा</span> ........<br /></div><br /><br />उसके भी सितम ढाने की अदा खूब है ।<br />दूर जा जा के पास आने की अदा खूब है ॥<br /><br />बैठी है महफ़िल में मगर देखो तो सही<br />दूर ही से <span>नज़रें </span>मिलाने की अदा खूब है<br /><br />मेरे हर ख्वाब को मकसद बनाये बैठी है<br />मोहब्बत उसके निभाने की अदा खूब है ॥<br /><br />रंज में रोती है बेशक रुलाती भी है मुझको<br />इश्क में रूठने मनाने की अदा खूब है ॥<br /><br />कभी इतेफाक से मिल जाए तो शरमाके<br />दांतों में उंगली दबाने की अदा खूब है ॥<br /><br />निगारे-नजरवान कहूँ या"अर्श"हयाते-जान<br />शब्-ऐ-तारिक उसके मिटाने की अदा खूब है ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२६/१२/२००८<br /><br />निगारे-नजरवान=आंखों में खुबसूरत दिखने वाली<br />शब्-ऐ-तारिक=अँधेरी रात (इसका प्रयोग ज़िन्दगी<br />में फैले अंधियारे से है )<br /><span>हयाते</span>-<span>जान</span>=<span>ज़िन्दगी</span> <span>की</span> <span>जान।</span>"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-73566150645347613662008-12-24T22:54:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.879-08:00मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरों की बस्ती में ...वो के एक रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ।<br />जख्म उसी के थे दिखाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />तिश्नगी उसकी किस क़द्र होगी महफ़िल में<br />जाम टकरा के पिलाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />जख्म देकर हादसा बताये फिरता है मगर<br />वो हादसा अमलन गिनाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />रस्मे उल्फत जो सिखाता रहा उम्र भर मुझको<br />आख़िर वही रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />वो दुआ करता रहा मिल जाए खियाबां उसको<br />लो खिजां में फूल खिलाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरो की बस्ती में<br />दिया जो उसको आशियाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />एक चेहरेमें छुपाये रखा है"अर्श"कई चेहरे<br />आईना उसको दिखाने पे खफा हो बैठा ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />२५/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-52417189849136471982008-12-23T04:15:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.880-08:00घर तक आए है तमाशाइयां ...मैं हूँ तू है, और है तन्हाईयां ।<br />दिल है धड़कन और अंगडाइयां ॥<br /><br />मौसम भी है,कुछ दिल बेबस<br />दिल कहता है कर बेईमानीयाँ ॥<br /><br />देखो तमाशा ना बन जाए कहीं<br />घर तक आए है तमाशाइयां ॥<br /><br />तेरी आँखें तो है दोनों जहाँ<br />इस दो जहाँ पे है कुरबानीयाँ ॥<br /><br />जुल्फ तेरे है यूँ घटावों जैसी<br />हुस्न से है तेरे रोशानाइयां ॥<br /><br />तेरी नजाकत तेरी हया भी<br />कर देगा"अर्श"फ़िर रुस्वाइयां ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२३/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-62329112472244712192008-12-16T08:07:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.880-08:00वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में ....वो रात कभी का भुला दिया ।<br />जो ख्वाब जगे थे सुला दिया ॥<br /><br />वो खड़ा है मुखालिफ-सफ <span>में<br /></span>इस <span>बेदिली </span>ने फ़िर रुला दिया ॥<br /><br />जो करता रहा जुर्मो का सौदा<br />मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥<br /><br />रहने लगा मिजाज से आज-कल<br />जिस वक्त से हमको भुला दिया ॥<br /><br />क्या बात थी तुम मुकर गए<br />किस बात पे यूँ लहू ला दिया ॥<br /><br />आवो ना आजावो"अर्श"वरना<br />ज़िन्दगी ने दाम पे झुला दिया ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />१६/१२/२००८<br /><br />मुखालिफ-सफ=बिरोधियों की पंक्ति<br />दाम=फंदा ,मुन्सफी=फैसला॥<br /><br />एक शे'र खास तौर से विनय भाई(नज़र) के लिए...<br />लिखो सानी अब तुम नज़र<br />मैंने तो मिसरा उला दिया ॥"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-14961866163214856382008-12-14T00:33:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.880-08:00काटों की तिजारत सा मेहमां निकला ...मैं भी, किस दर्जे, दीवाना निकला ।<br />जो था मेहरबां,नामेहरबां निकला ॥<br /><br />देता रहा मुझे,जो तस्सलियाँ उम्रभर<br />वो कहता रहा हा -हा ,ना-ना निकला ॥<br /><br />जाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया<br />देख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥<br /><br />फ़िर किसी रोज,वो तड़पकर आया<br />मिली तस्कीन,मगर अब्ना निकला ॥<br /><br />मिले थे जिस उम्मीद से"अर्श"भरम में<br />काटों की तिजारत,सा मेहमां निकला ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />१४/१२/२००८<br /><br />तिजारत=खरीद-बिक्री ,अब्ना =अवसर<br />तस्कीन = शान्ति ॥"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-10649276412529607082008-12-13T04:01:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.881-08:00दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में ...बन जाए अगर आदमी आदमी सा ।<br />के फितरत नहीं आदमी आदमी सा ॥<br /><br />ना आंसू बहेंगे आंखों से किसी के<br />गर काटे कोई आदमी आदमी सा ॥<br /><br />दीवाना हुआ है वो पागल भी मानों<span></span><br />दिखा है कोई आदमी आदमी सा ॥<br /><br />कहे क्या कोई अब फ़साना ग़मों का<br />हँसेंगे सभी कह आदमी आदमी सा ॥<br /><br />हंसीं खेल में तबाह ना कर किसी <span>को<br /></span>दिल तेरा भी है आदमी आदमी सा ॥<br /><br />दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में<br />क्या है गाँव में आदमी आदमी सा ॥<br /><br />मुल्कों में ना होगी यूँ सरहद की बातें<br />बन जाए अगर आदमी आदमी सा ॥<br /><br />वो कौन है जो कोने में सिसक रहा है<br />पूछो हाल"अर्श" आदमी आदमी सा ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />१३/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-50152489560048808612008-12-11T07:40:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.881-08:00बैठा हूँ दर्द की बस्ती में तजुर्बों के लिए ...शबे-फिराक में वो कैसी निशां छोड़ गया ।<br />जहाँ से वो गया मुझको वहां छोड़ गया ॥<br /><br />रहेगा दिल में अखारस ये उम्र भर के लिए<br />जिस बेबसी से वो यूँ आस्तां छोड़ गया ॥<br /><br />चली जो दर्द की आंधी गर्दो-गुबार लेकर<br />बुझी-बुझी से राख में वो धुंआ छोड़ गया ॥<br /><br />मुझे रोता, तड़पता. छटपटाता देखकर<br />किया एहसान मुझे मेरे मकां छोड़ गया ॥<br /><br />बैठा हूँ दर्द की बस्ती में तजुर्बों के लिए<br />कहाँ है वैसा मौसम जो समां छोड़ गया ॥<br /><br />वो मिला जीने का मकसद मिला था मुझे<br />वो गया"अर्श"फ़िर अहले-जुबां छोड़ गया ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />११/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-24222354975006785892008-12-08T20:45:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.882-08:00अब रौशनी कहाँ है मेरे हिस्से ...अब रौशनी कहाँ है मेरे हिस्से ।<br />लव भी ज़दा ज़दा है मेरे हिस्से ॥<br /><br />गर संभल सका ,तो चल लूँगा ।<br />पर रास्ता ,कहाँ है मेरे हिस्से ॥<br /><br />मैं भी चीखता चिल्लाता मगर ।<br />कई दर्द बेजुबां है मेरे हिस्से ॥<br /><br />हुजूम हो खुशी का तेरी महफ़िल <span>में ।<br /></span>ज़ख्म है, बद्दुआ है मेरे हिस्से ॥<br /><br />चाँद तारे जो तेरी निगहबानी करे ।<br />काफिला जुगनुओं का है मेरे हिस्से ॥<br /><br />नही है"अर्श"मेरे नसीब ना सही ।<br />तेरी निगाह का, चारा है मेरे हिस्से ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />०९/१२/२००८<br />ज़दा =चोट खाया ,निगहबानी=रक्षक ,"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-76719848984322137402008-12-06T23:48:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.882-08:00कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में ...कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में।<br />आया नहीं वो, के न था , दुआ के असर में ॥<br /><br />माना के मुद्दई हूँ मैं,पर इतनी तो ख़बर <span>हो ।<br /></span>क्या ज़ुल्म थी हमारी,कहो जिक्र जबर में ॥<br /><br />उकता गया हूँ अब तो , मैं भी यूँ ही लेटे हुए ।<br />चलती रही थी नब्ज़ मेरी,डाला जो कबर में ॥<br /><br />मिलाया खाक में मुझको,मिटाई हस्ती भी मेरी ।<br />धुन्दोगे मेरे बाद मुझको,वहीँ गर्दे सफर <span>में ॥<br /><br /></span>वही मैं था, वही मय वही साकी थे बने तुम ।<br />वहीँ डूब के रह गया था मैं,बस तेरी नज़र में ॥<br /><br />आयेंगे मिलजायेगे तुझे,"अर्श"नए दोस्त ।<br />मुश्किल ही मिले जैसा मेरे,कोई राहबर में ॥<br /><br />प्रकाश"अर्श"<br />०७/१२/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-90660696515328240372008-12-02T06:58:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.883-08:00क्या हुस्न है क्या जमाल है ...क्या हुस्न है, क्या जमाल है ।<br />खुदाया तिरा, क्या कमाल है ॥<br /><br />वो सितमगर है,मगर फ़िर भी ।<br />पूछता वही तो ,मेरा हाल है ॥<br /><br />वक्त ने तो मुझे,ठुकरा दिया था ।<br />उसने थामा तो,हुआ बवाल है ॥<br /><br />अपना सबकुछ,गवां कर मैंने ।<br />वो मिला फ़िर ,क्या मलाल है ॥<br /><br />इक सदा है ,मुझसे जुड़ी हुई ।<br />वो सदा भी,उसका सवाल है ॥<br /><br />है चाँदनी में,धूलि हुई या"अर्श"<br />मेरी नज़र ,का इकबाल है ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />०२/१२/२००८<br />इकबाल = सौभाग्य ,"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-73191067749970001662008-11-30T06:41:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.884-08:00किस्मत में मेरे चैन से जीना लिखा दे ...<div style="text-align: center; color: rgb(0, 0, 0);"><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >वेसे</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >तो</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >मैं</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >मुसलसल</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >ग़ज़ल</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >ही</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" ></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" ></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" ></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" ></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >लिखने </span>की कोशिश करता <span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >हूँ</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > ,</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >मगर</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >एक</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >गैर</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >मुसलसल</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >ग़ज़ल</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >आप</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >सबों</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >के</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >सामने</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >पेश</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >कर</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >रहा</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >हूँ</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >उम्मीद</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >करता</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >हूँ</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >पसंद</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" > </span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >आए</span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:times new roman;" >........</span><br /></div><br /><br />किस्मत में मेरे , चैन से जीना लिख दे ।<br />दोजख भी कुबूल हो,मक्का-मदीना लिख दे ॥<br /><br />जहाँ दहशत जदा हैं लोग,चलने से गोलियां ।<br />हर गोलिओं के नाम , मेरा सीना लिख दे ॥<br /><br />मेहनत किए बगैर ,बद अंजाम से डरता हूँ ।<br />कुछ काम कर सकूँ,वो खून-पसीना लिख दे ॥<br /><br />वो शान है उनकी ताज पे,गोरों के महफ़िल में ।<br />कभी शर्म आ जाए ,तो वो नगीना लिख दे ॥<br /><br />जितना वो पिसेगी ,चढेगा उतना उसका रंग ।<br />मोहब्बत का नाम ,कोई संगे - हिना लिख दे ॥<br /><br />दिखे है तेरा अक्स ,हर टुकड़े में यहाँ "अर्श"<br />टुटा था ,वो दिल था ,तू आइना लिख दे ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />३०/११/२००८<br />चौथा शे'र भारत के कोहिनूर हीरे के बारे में कहा गया है जो इंग्लॅण्ड के महारानी के ताज पे सुशोभित है ॥"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-33258105620667555732008-11-27T02:45:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.884-08:00आज घर के एक कोने में बिखरा पड़ा हूँ मैं ....हुई है ज़िन्दगी मेहरबान लो आबला दिया ।<br />मोहब्बत में हमें इनाम उसने गिला दिया ॥<br /><br />आज घर के एक कोने में, बिखरा पड़ा हूँ मैं ।<br />यही किस्मत थी हमारी, यही सिला दिया ॥<br /><br />कहती थी के करती है,मुझे टूट के <span>मोहब्बत।<br /></span>आई जो मेरे पास तो, मुझे इब्तिला दिया ॥<br /><br />कभी फुरकत की बात पे,कहा चुप करो जी <span>तुम ।<br /></span>जाने लगी तो उम्र भर ,का फासिला <span>दिया ॥<br /><br /></span>सी - सी के पहन लूँगा, वही चाके - कफ़न मैं ।<br />जिस नाज़ से"अर्श"तुने खाक में मिला दिया ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२७/११/१००८<br /><br />इब्तिला =पीडा,कष्ट । आबला =छाला"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-24947055115548932602008-11-22T21:41:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.885-08:00इक हर्फ़ में हमने अपनी जिंदगानी लिख दी ...इक हर्फ़ में हमने अपनी जिंदगानी लिख दी ।<br />हाय तौबा, हुआ फ़िर जो नादानी लिख दी ॥<br /><br />वो समंदर है उसको इस बात का क्या ग़म ,<br />आंखों से जो बह निकले ,पानी- पानी लिख दी ॥<br /><br />था कच्ची उमर का मगर था मजबूत इरादा ,<br />लहू के रंग से नाम उनकी आसमानी लिख दी ॥<br /><br />नवाजा था उसने, के जाहिल हूँ ,मैं जालिम हूँ<br />मोहब्बत का करम था हमने मेहरबानी लिख दी ॥<br /><br />हुई जो चर्चा अपनी मौत की ,जनाजे से दफ़न तक ,<br />किया था कत्ल ,मगर वक्त पे कुर्बानी लिख दी ॥<br /><br />रहने दो, इत्मिनान से अब ऐ मेरे रकीबों ,<br />कुछ नही है मेरे पास,"अर्श"को जवानी लिख दी ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२३/११/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-88415233400704467162008-11-21T22:13:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.885-08:00चल लौट चलें "अर्श" वहीँ अपने अब्तर में .....ये कहाँ आ गया हूँ मैं , दीवानों के शहर में ।<br />हर वक्त खटकता हूँ यहाँ सबके नज़र में ॥<br /><br />लिखता हूँ गर कोई ग़ज़ल होती न मुक्कमल ,<br />होती है ग़लत रदीफ़,काफिये में बहर में ॥<br /><br />सब है अपनी धुन में, मतलब ही नही किसी को ,<br />कैसा है यहाँ चलो-चलन अपने -अपने घर में ॥<br /><br />किया जो इज़हारे मोहब्बत, मैंने किसी से ,<br />टाला है वहीँ ,उसी ने ,बस अगर-मगर में ॥<br /><br />होती हो तिजारत अगर मोहब्बत पे मोहब्बत ,<br />मैं भी खड़ा हासिये पे यहाँ सिम-ओ-जर में ॥<br /><br />नही करनी मोहब्बत मुझे, न होगी ये मुझसे ,<br />चल लौट चले "अर्श"वही अपने अब्तर में ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२१/११/२००८<br /><br />अब्तर =मूल्यहीन,"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2035480358237014309.post-19358270413689800482008-11-20T08:10:00.000-08:002009-02-05T07:30:29.886-08:00तेरे दिल से मेरे दिल का रिश्ता क्या ...तेरे दिल से ,मेरे दिल का रिश्ता क्या ।<br />तू मिलती, ना मैं मिलता, फ़िर मिलता क्या ॥<br /><br />सोंच रहा ,क्यूँ तेरा ऐसे नाम लिया ,<br />याद है अब भी भूलता फ़िर तो भूलता क्या ॥<br /><br />वो फलक जो दूर तलक जा मिलता है ,<br />जाता मैं तो वो वहां फ़िर मिलता क्या ॥<br /><br /><span>याद</span> <span>है</span> <span>आब</span> <span>भी</span> <span>तेरी</span> <span>सांसों</span> <span>की</span> <span>गर्माहट</span> ,<br /><span>राख</span> <span>हुआ</span> <span>था</span> <span>जलने</span> <span>को</span> अब <span>जलता</span> <span>क्या</span> ॥<br /><br />वर्षो पहले एक चमन होता था अपना ,<br />एक भी फुल अब "अर्श"वहां है खिलता क्या ॥<br /><br />प्रकाश "अर्श"<br />२०/११/२००८"अर्श"http://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.com0