आप सबके सामने एक गीत नज़्र कर रहा हूँ ,जो मूलतः पहली गीत है इस ब्लॉग पे मेरी ।गलती के लिए मुआफी चाहूँगा ....
तुम्हे रात-दिन क्यूँ मैं सोचा करूँ।
तेरे ख्वाब ही अक्सर देखा करूँ॥
नहीं के हमें दिल लगना नही था
गली हुस्न की हमको जाना नही था
बना के खुदा फ़िर क्यूँ सजदा करूँ ॥
तेरे ख्वाब ही .......
अभी दिल हमारा धड़कना था सिखा
तुम्हारी नज़र से बचाना किसीका
मैं जिन्दा रहूँ या के तौबा करूँ ॥
तुम्हे रात दिन ........
हमारी मोहब्बत के चर्चे है देखो
तुम्हे जानते है मेरे नाम से वो
है खाई कसम क्यूँ मैं धोखा करूँ ॥
तुम्हे रात दिन .....
तेरे ख्वाब ही अक्सर ....
प्रकाश"अर्श"
०१/०२/२००९
Sunday, February 1, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)