आती है उनकी याद अब भी कभी कभी ।
मिलता हूँ अपने आप से जब भी कभी कभी ॥
रहती थी ,परेशान वो, चेहरा छुपाने में
उतारता था जब नकाब सब भी कभी कभी ।
आई न, नींद उम्र भर इसी, इंतजार में
लगता है आ रही है वो अब भी कभी कभी ॥
लिखता था ख़ुद जवाब, मैं अपने सवाल का
देती न थी, जवाब वो तब भी कभी कभी ॥
हमने क्या बिगाडा "अर्श" के हम बिछड़ गए
करता है फ़िर गुनाह क्यूँ रब भी कभी कभी ॥
प्रकाश "अर्श"
१३/११/२००८
Wednesday, November 12, 2008
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आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...