Wednesday, November 12, 2008

करता है फ़िर गुनाह क्यू रब भी कभी कभी ..

आती है उनकी याद अब भी कभी कभी ।
मिलता हूँ अपने आप से जब भी कभी कभी ॥

रहती थी ,परेशान वो, चेहरा छुपाने में
उतारता था जब नकाब सब भी कभी कभी ।

आई न, नींद उम्र भर इसी, इंतजार में
लगता है आ रही है वो अब भी कभी कभी ॥

लिखता था ख़ुद जवाब, मैं अपने सवाल का
देती न थी, जवाब वो तब भी कभी कभी ॥

हमने क्या बिगाडा "अर्श" के हम बिछड़ गए
करता है फ़िर गुनाह क्यूँ रब भी कभी कभी ॥

प्रकाश "अर्श"
१३/११/२००८

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