Tuesday, December 30, 2008

दरिया है वो प्यासा है वो देखो नकाब में ...

चेहरा छुपाए रख्खा है वो देखो नकाब में ।
कातील है फ़रिश्ता है वो देखो नकाब में ॥

कत्ल करता है ऐसे के पता भी ना चले ,
जख्म देता है गहरा है वो देखो नकाब में ॥

हमसे रूठा है ये सितम है या अदा उसकी
जैसा भी है अच्छा है वो देखो नकाब में ॥

नाजुक लबों से उसके मोहब्बत की सदा सुन
जिन्दा हूँ के आया है वो देखो नकाब में ॥

मैं हूँ इस बात पे खामोश तू उसकी सब्र देख
दरिया है वो प्यासा है वो देखो नकाब में ॥

एक बेकली है जो दफ़न है"अर्श"मेरे सीने में
एक खलिश है के तड़पता है वो देखो नकाब में ॥

प्रकाश "अर्श"
३०/१२/२००८

Saturday, December 27, 2008

अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जाए...

कोई लकीर नही खींचते दिलों के रास्ते में ।
के हमारा घर नही बांटता मीलों के रास्ते में ॥

दोनों सरहद में बंटें है मगर यूँ गुमराह न हों
के अनपढ़ आ नही सकता काबीलों के रास्ते में ॥

मौज आएगी टकराएगी मगर ये डर कैसा
के मौज दम भी तोडे है साहिलों के रास्ते में ॥

दोनों ने तान रखा है निशाना एक दूजे पे
कोई फ़िर आ नही सकता जाहिलों के रास्ते में ॥

रगों में खून भी बहता है उसके मेरे पूर्वज का
हमारी पहचान रहे कायम तब्दीलों के रास्ते में ॥

अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जायें
कोई फ़िर आ नही सकता फाजिलों के रास्ते में॥


प्रकाश"अर्श"
जुन्नार=जनेऊ ,तस्बीह=मुसलमानों का जाप माला
फाजिलों= प्रवीन,श्रेष्ठ ।

Friday, December 26, 2008

मेरे हर ख्वाब को मकसद बनाये बैठी है ...

आज मैं इस ब्लॉग पे अपनी पचासवीं ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद चाहूँगा ........


उसके भी सितम ढाने की अदा खूब है ।
दूर जा जा के पास आने की अदा खूब है ॥

बैठी है महफ़िल में मगर देखो तो सही
दूर ही से नज़रें मिलाने की अदा खूब है

मेरे हर ख्वाब को मकसद बनाये बैठी है
मोहब्बत उसके निभाने की अदा खूब है ॥

रंज में रोती है बेशक रुलाती भी है मुझको
इश्क में रूठने मनाने की अदा खूब है ॥

कभी इतेफाक से मिल जाए तो शरमाके
दांतों में उंगली दबाने की अदा खूब है ॥

निगारे-नजरवान कहूँ या"अर्श"हयाते-जान
शब्-ऐ-तारिक उसके मिटाने की अदा खूब है ॥

प्रकाश "अर्श"
२६/१२/२००८

निगारे-नजरवान=आंखों में खुबसूरत दिखने वाली
शब्-ऐ-तारिक=अँधेरी रात (इसका प्रयोग ज़िन्दगी
में फैले अंधियारे से है )
हयाते-जान=ज़िन्दगी की जान।

Wednesday, December 24, 2008

मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरों की बस्ती में ...

वो के एक रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ।
जख्म उसी के थे दिखाने पे खफा हो बैठा ॥

तिश्नगी उसकी किस क़द्र होगी महफ़िल में
जाम टकरा के पिलाने पे खफा हो बैठा ॥

जख्म देकर हादसा बताये फिरता है मगर
वो हादसा अमलन गिनाने पे खफा हो बैठा ॥

रस्मे उल्फत जो सिखाता रहा उम्र भर मुझको
आख़िर वही रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ॥

वो दुआ करता रहा मिल जाए खियाबां उसको
लो खिजां में फूल खिलाने पे खफा हो बैठा ॥

मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरो की बस्ती में
दिया जो उसको आशियाने पे खफा हो बैठा ॥

एक चेहरेमें छुपाये रखा है"अर्श"कई चेहरे
आईना उसको दिखाने पे खफा हो बैठा ॥

प्रकाश"अर्श"
२५/१२/२००८

Tuesday, December 23, 2008

घर तक आए है तमाशाइयां ...

मैं हूँ तू है, और है तन्हाईयां ।
दिल है धड़कन और अंगडाइयां ॥

मौसम भी है,कुछ दिल बेबस
दिल कहता है कर बेईमानीयाँ ॥

देखो तमाशा ना बन जाए कहीं
घर तक आए है तमाशाइयां ॥

तेरी आँखें तो है दोनों जहाँ
इस दो जहाँ पे है कुरबानीयाँ ॥

जुल्फ तेरे है यूँ घटावों जैसी
हुस्न से है तेरे रोशानाइयां ॥

तेरी नजाकत तेरी हया भी
कर देगा"अर्श"फ़िर रुस्वाइयां ॥

प्रकाश "अर्श"
२३/१२/२००८

Tuesday, December 16, 2008

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में ....

वो रात कभी का भुला दिया ।
जो ख्वाब जगे थे सुला दिया ॥

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में
इस बेदिली ने फ़िर रुला दिया ॥

जो करता रहा जुर्मो का सौदा
मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥

रहने लगा मिजाज से आज-कल
जिस वक्त से हमको भुला दिया ॥

क्या बात थी तुम मुकर गए
किस बात पे यूँ लहू ला दिया ॥

आवो ना आजावो"अर्श"वरना
ज़िन्दगी ने दाम पे झुला दिया ॥

प्रकाश"अर्श"
१६/१२/२००८

मुखालिफ-सफ=बिरोधियों की पंक्ति
दाम=फंदा ,मुन्सफी=फैसला॥

एक शे'र खास तौर से विनय भाई(नज़र) के लिए...
लिखो सानी अब तुम नज़र
मैंने तो मिसरा उला दिया ॥

Sunday, December 14, 2008

काटों की तिजारत सा मेहमां निकला ...

मैं भी, किस दर्जे, दीवाना निकला ।
जो था मेहरबां,नामेहरबां निकला ॥

देता रहा मुझे,जो तस्सलियाँ उम्रभर
वो कहता रहा हा -हा ,ना-ना निकला ॥

जाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया
देख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥

फ़िर किसी रोज,वो तड़पकर आया
मिली तस्कीन,मगर अब्ना निकला ॥

मिले थे जिस उम्मीद से"अर्श"भरम में
काटों की तिजारत,सा मेहमां निकला ॥

प्रकाश "अर्श"
१४/१२/२००८

तिजारत=खरीद-बिक्री ,अब्ना =अवसर
तस्कीन = शान्ति ॥

Saturday, December 13, 2008

दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में ...

बन जाए अगर आदमी आदमी सा ।
के फितरत नहीं आदमी आदमी सा ॥

ना आंसू बहेंगे आंखों से किसी के
गर काटे कोई आदमी आदमी सा ॥

दीवाना हुआ है वो पागल भी मानों
दिखा है कोई आदमी आदमी सा ॥

कहे क्या कोई अब फ़साना ग़मों का
हँसेंगे सभी कह आदमी आदमी सा ॥

हंसीं खेल में तबाह ना कर किसी को
दिल तेरा भी है आदमी आदमी सा ॥

दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में
क्या है गाँव में आदमी आदमी सा ॥

मुल्कों में ना होगी यूँ सरहद की बातें
बन जाए अगर आदमी आदमी सा ॥

वो कौन है जो कोने में सिसक रहा है
पूछो हाल"अर्श" आदमी आदमी सा ॥

प्रकाश"अर्श"
१३/१२/२००८

Thursday, December 11, 2008

बैठा हूँ दर्द की बस्ती में तजुर्बों के लिए ...

शबे-फिराक में वो कैसी निशां छोड़ गया ।
जहाँ से वो गया मुझको वहां छोड़ गया ॥

रहेगा दिल में अखारस ये उम्र भर के लिए
जिस बेबसी से वो यूँ आस्तां छोड़ गया ॥

चली जो दर्द की आंधी गर्दो-गुबार लेकर
बुझी-बुझी से राख में वो धुंआ छोड़ गया ॥

मुझे रोता, तड़पता. छटपटाता देखकर
किया एहसान मुझे मेरे मकां छोड़ गया ॥

बैठा हूँ दर्द की बस्ती में तजुर्बों के लिए
कहाँ है वैसा मौसम जो समां छोड़ गया ॥

वो मिला जीने का मकसद मिला था मुझे
वो गया"अर्श"फ़िर अहले-जुबां छोड़ गया ॥

प्रकाश "अर्श"
११/१२/२००८

Monday, December 8, 2008

अब रौशनी कहाँ है मेरे हिस्से ...

अब रौशनी कहाँ है मेरे हिस्से ।
लव भी ज़दा ज़दा है मेरे हिस्से ॥

गर संभल सका ,तो चल लूँगा ।
पर रास्ता ,कहाँ है मेरे हिस्से ॥

मैं भी चीखता चिल्लाता मगर ।
कई दर्द बेजुबां है मेरे हिस्से ॥

हुजूम हो खुशी का तेरी महफ़िल में ।
ज़ख्म है, बद्दुआ है मेरे हिस्से ॥

चाँद तारे जो तेरी निगहबानी करे ।
काफिला जुगनुओं का है मेरे हिस्से ॥

नही है"अर्श"मेरे नसीब ना सही ।
तेरी निगाह का, चारा है मेरे हिस्से ॥

प्रकाश "अर्श"
०९/१२/२००८
ज़दा =चोट खाया ,निगहबानी=रक्षक ,

Saturday, December 6, 2008

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में ...

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में।
आया नहीं वो, के न था , दुआ के असर में ॥

माना के मुद्दई हूँ मैं,पर इतनी तो ख़बर हो ।
क्या ज़ुल्म थी हमारी,कहो जिक्र जबर में ॥

उकता गया हूँ अब तो , मैं भी यूँ ही लेटे हुए ।
चलती रही थी नब्ज़ मेरी,डाला जो कबर में ॥

मिलाया खाक में मुझको,मिटाई हस्ती भी मेरी ।
धुन्दोगे मेरे बाद मुझको,वहीँ गर्दे सफर में ॥

वही मैं था, वही मय वही साकी थे बने तुम ।
वहीँ डूब के रह गया था मैं,बस तेरी नज़र में ॥

आयेंगे मिलजायेगे तुझे,"अर्श"नए दोस्त ।
मुश्किल ही मिले जैसा मेरे,कोई राहबर में ॥

प्रकाश"अर्श"
०७/१२/२००८

Tuesday, December 2, 2008

क्या हुस्न है क्या जमाल है ...

क्या हुस्न है, क्या जमाल है ।
खुदाया तिरा, क्या कमाल है ॥

वो सितमगर है,मगर फ़िर भी ।
पूछता वही तो ,मेरा हाल है ॥

वक्त ने तो मुझे,ठुकरा दिया था ।
उसने थामा तो,हुआ बवाल है ॥

अपना सबकुछ,गवां कर मैंने ।
वो मिला फ़िर ,क्या मलाल है ॥

इक सदा है ,मुझसे जुड़ी हुई ।
वो सदा भी,उसका सवाल है ॥

है चाँदनी में,धूलि हुई या"अर्श"
मेरी नज़र ,का इकबाल है ॥

प्रकाश "अर्श"
०२/१२/२००८
इकबाल = सौभाग्य ,