अपने ही घर में आए हैं हम मेहमान की तरह ।
हमसे भी पूछा हाल-ऐ-दिल अंजान की तरह ॥
सबको लगाया उसने गले जी बड़े तपाक से ,
हमसे मिलाया हाथ भी तो मेहरबान की तरह ॥
ऐसी बेकली तो कभी जिन्दां में भी ना हो ,
जिन्दां में हूँ जिन्दा तो बस अह्जान की तरह ॥
चिलमन के उस तरफ़ से जो देखा था एकबार ,
शायद दिखा रहे थे हम भी नादान की तरह ॥
हमको निकाल देते "अर्श" गर बे-तमीज थे ,
हमको बुलाया है तो मिलो इंसान की तरह॥
प्रकाश "अर्श'
२/११/२००८
जिन्दां= कारागार ,बंदीगृह ॥ अह्जान = दुःख से ॥
Sunday, November 2, 2008
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आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...