Sunday, November 2, 2008

अपने ही घर में आए है हम मेहमान की तरह.....

अपने ही घर में आए हैं हम मेहमान की तरह ।
हमसे भी पूछा हाल-ऐ-दिल अंजान की तरह ॥

सबको लगाया उसने गले जी बड़े तपाक से ,
हमसे मिलाया हाथ भी तो मेहरबान की तरह ॥

ऐसी बेकली तो कभी जिन्दां में भी ना हो ,
जिन्दां में हूँ जिन्दा तो बस अह्जान की तरह ॥

चिलमन के उस तरफ़ से जो देखा था एकबार ,
शायद दिखा रहे थे हम भी नादान की तरह ॥

हमको निकाल देते "अर्श" गर बे-तमीज थे ,
हमको बुलाया है तो मिलो इंसान की तरह॥


प्रकाश "अर्श'
२/११/२००८

जिन्दां= कारागार ,बंदीगृह ॥ अह्जान = दुःख से ॥

No comments:

Post a Comment

आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...