नहीं सियाह तो समंदर पे हुकूमत होगी ।
मिलेगी वो मुझे अगर मेरी किस्मत होगी ॥
अभी से हार के क्यूँ बैठ जायें खुदा से ,
मिलेंगे लोग वही जब दोजख जन्नत होगी ॥
बहोत कठिन है, यकीनन ये राहे -मोहब्बत ,
करेंगे पार, अगर हौसला हिम्मत होगी ॥
नहीं हैं सीरी -फ़रहाद ,कैस से बड़े हम
मिलेगी हमको भी उकुबत जो उकुबत होगी ॥
वज्म में आना तुम भी, ओ मेरे रकीबों
करेगा "अर्श" खिदमत जो खिदमत होगी ॥
प्रकाश "अर्श"
९/११/२००८
खुदा = मोहब्बत के ठेकेदार, उकुबत = सज़ा ,
खिदमत = सेवा ,आवभगत । बज्म = सभा ,
कैस = मजनू ,रकीब = दुश्मन .................,
Sunday, November 9, 2008
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