Sunday, November 16, 2008

हाजीरी लगाई मैंने फ़िर इकरार कर लिया ..

उनसे नज़र हमने, इस तरह मिला लिया ।
हाय अल्लाह क्या कर दिया, ये क्या कर लिया ॥

आई जो बात ,अपनी मोहब्बत की अस्हाब ,
उसने ना कोई दिल लिया, न कोई जिगर लिया ॥

देखा था, इस अंदाज़ से उसने मेरी तरफ़ ,
रहमत खुदाया तेरा था के तीरे-जिगर लिया ॥

लोगों ने पूछा जब ,मुन्सफी में उसका नाम ,
आशुफ्ता खुदा का नाम हमने उधर लिया ॥

रोका जब उस तरफ़ से, रास्तों ने मेरा हाथ ,
हाजीरी लगाई मैंने, फ़िर इकरार कर लिया ॥

मुझको भी अब बता दो दीवानों के अस्मशान ,
ख़ुद ही कब्र खोद लिया" अर्श" ख़ुद ही गुजर लिया ॥


प्रकाश "अर्श"
१६/११/२००८
अस्हाब =स्वामी ,मालिक,
आशुफ्ता =घबराहट में ,

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