Saturday, December 27, 2008

अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जाए...

कोई लकीर नही खींचते दिलों के रास्ते में ।
के हमारा घर नही बांटता मीलों के रास्ते में ॥

दोनों सरहद में बंटें है मगर यूँ गुमराह न हों
के अनपढ़ आ नही सकता काबीलों के रास्ते में ॥

मौज आएगी टकराएगी मगर ये डर कैसा
के मौज दम भी तोडे है साहिलों के रास्ते में ॥

दोनों ने तान रखा है निशाना एक दूजे पे
कोई फ़िर आ नही सकता जाहिलों के रास्ते में ॥

रगों में खून भी बहता है उसके मेरे पूर्वज का
हमारी पहचान रहे कायम तब्दीलों के रास्ते में ॥

अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जायें
कोई फ़िर आ नही सकता फाजिलों के रास्ते में॥


प्रकाश"अर्श"
जुन्नार=जनेऊ ,तस्बीह=मुसलमानों का जाप माला
फाजिलों= प्रवीन,श्रेष्ठ ।

1 comment:

  1. अगर जुन्नार और तस्बीह दोनों एक हो जायें
    कोई फ़िर आ नही सकता फाजिलों के रास्ते में॥


    (wah hindu muslim sab agar yahi sochne lag jaye to)?

    maine kaha tha ki mujhe ghazal ke niyam nahi maloom isliue ek question hai:

    "तब्दीलों के रास्ते में ॥"
    "काबीलों के रास्ते में" aadi main badi ee ki matra kya zayaz hai?
    Lagta to hai, kyunka apne makte main hi apne ko free kar diya hai!! Uttar dijiyega.
    agar ye zayaz hai to phir to koi bhi badi matra use kar sakte hai kafiyea main (jaise "bayklon ke raaste main" aadi...)
    Dhanvyaad.

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