Saturday, December 6, 2008

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में ...

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में।
आया नहीं वो, के न था , दुआ के असर में ॥

माना के मुद्दई हूँ मैं,पर इतनी तो ख़बर हो ।
क्या ज़ुल्म थी हमारी,कहो जिक्र जबर में ॥

उकता गया हूँ अब तो , मैं भी यूँ ही लेटे हुए ।
चलती रही थी नब्ज़ मेरी,डाला जो कबर में ॥

मिलाया खाक में मुझको,मिटाई हस्ती भी मेरी ।
धुन्दोगे मेरे बाद मुझको,वहीँ गर्दे सफर में ॥

वही मैं था, वही मय वही साकी थे बने तुम ।
वहीँ डूब के रह गया था मैं,बस तेरी नज़र में ॥

आयेंगे मिलजायेगे तुझे,"अर्श"नए दोस्त ।
मुश्किल ही मिले जैसा मेरे,कोई राहबर में ॥

प्रकाश"अर्श"
०७/१२/२००८

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