Tuesday, December 16, 2008

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में ....

वो रात कभी का भुला दिया ।
जो ख्वाब जगे थे सुला दिया ॥

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में
इस बेदिली ने फ़िर रुला दिया ॥

जो करता रहा जुर्मो का सौदा
मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥

रहने लगा मिजाज से आज-कल
जिस वक्त से हमको भुला दिया ॥

क्या बात थी तुम मुकर गए
किस बात पे यूँ लहू ला दिया ॥

आवो ना आजावो"अर्श"वरना
ज़िन्दगी ने दाम पे झुला दिया ॥

प्रकाश"अर्श"
१६/१२/२००८

मुखालिफ-सफ=बिरोधियों की पंक्ति
दाम=फंदा ,मुन्सफी=फैसला॥

एक शे'र खास तौर से विनय भाई(नज़र) के लिए...
लिखो सानी अब तुम नज़र
मैंने तो मिसरा उला दिया ॥

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