Saturday, December 13, 2008

दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में ...

बन जाए अगर आदमी आदमी सा ।
के फितरत नहीं आदमी आदमी सा ॥

ना आंसू बहेंगे आंखों से किसी के
गर काटे कोई आदमी आदमी सा ॥

दीवाना हुआ है वो पागल भी मानों
दिखा है कोई आदमी आदमी सा ॥

कहे क्या कोई अब फ़साना ग़मों का
हँसेंगे सभी कह आदमी आदमी सा ॥

हंसीं खेल में तबाह ना कर किसी को
दिल तेरा भी है आदमी आदमी सा ॥

दिखे है मुझे अब विरानियाँ शहर में
क्या है गाँव में आदमी आदमी सा ॥

मुल्कों में ना होगी यूँ सरहद की बातें
बन जाए अगर आदमी आदमी सा ॥

वो कौन है जो कोने में सिसक रहा है
पूछो हाल"अर्श" आदमी आदमी सा ॥

प्रकाश"अर्श"
१३/१२/२००८

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