वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥
दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥
वो मय था शराब था जो कल तलक
मैखाने में वही आने - जाने लगे ॥
जो ग़लत था तौबा किया था लोगों ने
आज वही गीत वो गुनगुनाने लगे ॥
बड़ी अदब से जब कहा खुदाहाफिज़ "अर्श"
जो कहने में शायद हमें ज़माने लगे ॥
प्रकाश "अर्श"
१४/१०/२००८
Tuesday, October 14, 2008
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