Tuesday, October 14, 2008

बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे .....

वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥

दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥

मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥

वो मय था शराब था जो कल तलक
मैखाने में वही आने - जाने लगे ॥

जो ग़लत था तौबा किया था लोगों ने
आज वही गीत वो गुनगुनाने लगे ॥

बड़ी अदब से जब कहा खुदाहाफिज़ "अर्श"
जो कहने में शायद हमें ज़माने लगे ॥

प्रकाश "अर्श"
१४/१०/२००८

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