Sunday, October 26, 2008

एक बस तू ही नही मुझसे खफा और भी हैं .......

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा और भी है ।
इक मोहब्बत के सिवा वादे-वफ़ा और भी है ॥

चोट खाया, तो समझ आई, के मुज़रिम हूँ मैं
दिल ने फ़िर मुझसे कहा देखलो जा और भी है ॥

तुझे अज़ीज़ है सिम-ओ-जर तो मुबारक हो तुझे
तुमसे गिला क्या करें जहाँ मेरे सीवा और भी है ॥

मैं हूँ महरूम ,मरहूम ,मरहम न लगा "अर्श"
सोंच लो जुल्म-ऐ-मोहब्बत की सजा और भी है ॥

"अर्श"
२६/१०/२००८
सिम-ओ-जर=धन दौलत ,जा = जगह

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