वक्त ने उनको मोहतरमा बना दिया ।
खुदाया तुमने भी किसको क्या बना दिया ॥
घर से निकला था जो , तकमील के लिए ,
रास्तों ने पैरो में आबला बना दिया ॥
मुझे गुरुर था, बज्म-ऐ-नाज़ पे मगर ,
उस शख्स ने,दार-ओ-रसन जा बना दिया ॥
हाँथ मलता रहा वो उम्र भर ,आखरस
खून को "अर्श" वही रँगे-हिना बना दिया ॥
प्रकाश "अर्श"
०१/१०/२००८
तकमील = मंजिल पे पहुँचना, आबला =छाला ,
रँगे-हिना =मेहंदी का रंग , बज्म-ऐ-नाज़ = माशूक की महफ़िल
दार-ओ-रसन = सूली और फंसी का फंदा , जा = जगह ॥
Wednesday, October 1, 2008
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