Saturday, January 10, 2009

जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था...

उसको मेरी मोहब्बत का एतबार न था ।
मैं लौट आऊंगा उसे मिरा इंतज़ार न था॥

वो लौट आई है शहर में मोहब्बत लेकर
बचपन का प्यार शायद यादगार न था ॥

लिखती थी हथेली पे वो इक नाम हमेशा
देखा तो नाम मिरा वो गमगुसार न था ॥

पूछता रहा मैं हाल उसका औरों के हवाले
जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था॥

आया है वो भी देख लो चार अश्क बहा के
जिस मजार पे गया था वहां अश्कबार न था॥

आया हूँ कहीं और या हूँ अपने शहर में
पहले तो बागबां"अर्श"यूँ बे-बहार न था ॥

प्रकाश"अर्श"
१०/०१/२००९

4 comments:

  1. आया हूँ कहीं और या हूँ अपने शहर में
    पहले तो बागबां"अर्श"यूँ बे-बहार न था ॥


    aaha !! pata nahi ye apke sehar ki baat hai , kashmir ki baat hai ya har sehar ki baat hai!!
    par is sher main kuch to baat hai

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  2. "Arsh".. urdu bahut acchi hain aapki..apka blog bahut sukoon deta hain...aap jaisa hunar nahi hain hamare pass...kuch likhne ki koshish kar lete hain kabhi kabhi.... mauka mile to padh ligiyega humko bhi

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  3. वो लौट आई है शहर में मोहब्बत लेकर
    बचपन का प्यार शायद यादगार न था ॥

    लिखती थी हथेली पे वो इक नाम हमेशा
    देखा तो नाम मिरा वो गमगुसार न था ॥

    its just brilliant... so innocent so pure expressions...

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