ढूँढने उनको हम जब भी निकले ।
लो दूर तक बस रास्ते ही निकले ॥
फासला बस कदम भर का ही था,
बढ़ा तो गाम फ़िर गाम ही निकले ॥
दर्द में जब आँख से आंसू ना बहे ,
पिछली दफा थे आखिरी निकले ॥
हया ने पूछा जब देखो शरमा के
हया का नाम तो हया ही निकले ॥
उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥
ये खुशबु जरा जानी पहचानी लगी
लगता है "अर्श"इधर से ही निकले ॥
प्रकाश"अर्श"
०२/०१/२००९
Friday, January 2, 2009
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उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
ReplyDeleteमुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥
...bahut nikle mere arman lekin phir bhi kaum nikle !!
...apki taarif karte karte thak gaya...
humf ! humf !!