Friday, January 2, 2009

ये खुश्बू जरा जानी पहचानी लगी ...

ढूँढने उनको हम जब भी निकले ।
लो दूर तक बस रास्ते ही निकले ॥

फासला बस कदम भर का ही था,
बढ़ा तो गाम फ़िर गाम ही निकले ॥

दर्द में जब आँख से आंसू ना बहे ,
पिछली दफा थे आखिरी निकले ॥

हया ने पूछा जब देखो शरमा के
हया का नाम तो हया ही निकले ॥

उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥

ये खुशबु जरा जानी पहचानी लगी
लगता है "अर्श"इधर से ही निकले ॥

प्रकाश"अर्श"
०२/०१/२००९

1 comment:

  1. उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
    मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥


    ...bahut nikle mere arman lekin phir bhi kaum nikle !!

    ...apki taarif karte karte thak gaya...
    humf ! humf !!

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आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...