आज मैं इस ब्लॉग पे अपनी पचासवीं ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद चाहूँगा ........
उसके भी सितम ढाने की अदा खूब है ।
दूर जा जा के पास आने की अदा खूब है ॥
बैठी है महफ़िल में मगर देखो तो सही
दूर ही से नज़रें मिलाने की अदा खूब है
मेरे हर ख्वाब को मकसद बनाये बैठी है
मोहब्बत उसके निभाने की अदा खूब है ॥
रंज में रोती है बेशक रुलाती भी है मुझको
इश्क में रूठने मनाने की अदा खूब है ॥
कभी इतेफाक से मिल जाए तो शरमाके
दांतों में उंगली दबाने की अदा खूब है ॥
निगारे-नजरवान कहूँ या"अर्श"हयाते-जान
शब्-ऐ-तारिक उसके मिटाने की अदा खूब है ॥
प्रकाश "अर्श"
२६/१२/२००८
निगारे-नजरवान=आंखों में खुबसूरत दिखने वाली
शब्-ऐ-तारिक=अँधेरी रात (इसका प्रयोग ज़िन्दगी
में फैले अंधियारे से है )
हयाते-जान=ज़िन्दगी की जान।
Haaf century ke liye balla (ya kalam) to upar uthaiyea:
ReplyDeleteकभी इतेफाक से मिल जाए तो शरमाके
दांतों में उंगली दबाने की अदा खूब है ॥
wah!!
Baki ghazlein phir kabhi!!
Thanks For sharing such a nice boquet of Ghazals.
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