मैं भी, किस दर्जे, दीवाना निकला ।
जो था मेहरबां,नामेहरबां निकला ॥
देता रहा मुझे,जो तस्सलियाँ उम्रभर
वो कहता रहा हा -हा ,ना-ना निकला ॥
जाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया
देख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥
फ़िर किसी रोज,वो तड़पकर आया
मिली तस्कीन,मगर अब्ना निकला ॥
मिले थे जिस उम्मीद से"अर्श"भरम में
काटों की तिजारत,सा मेहमां निकला ॥
प्रकाश "अर्श"
१४/१२/२००८
तिजारत=खरीद-बिक्री ,अब्ना =अवसर
तस्कीन = शान्ति ॥
Sunday, December 14, 2008
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आपका प्रोत्साहन प्रेरणाश्रोत की तरह है ... धन्यवाद ...